श्रावण मास के पावन अवसर पर बड़गांव देवबंद मार्ग पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं की आवाजाही देखी गई, वहीं बड़गांव में स्थित प्राचीन शिव मंदिर से लेकर गोगामेड़ी धाम तक महिलाओं और बच्चों ने बागड़ वाले एवं शिव अवतार श्री गुरु गोरखनाथ जी के भजन-कीर्तन करते हुए श्रद्धा एवं भक्ति से यात्रा की शुरुआत की। यह यात्रा भाद्रपद मास तक ग्रामीणों दूर विभिन्न मार्गों से पैदल, ट्रैक्टर आदि साधनों के माध्यम से पूरी की जाती है।
बागड़ यात्रा को लेकर गांव में खासा उत्साह देखने को मिलता है। ग्रामीणों के अनुसार, जब किसी भगत की मनोकामना पूर्ण होती है तो वह बागड़ यात्रा पर जाता है। इस अवसर पर उसके घर पर हर रोज ढोल-नगाड़ों के साथ कढ़ी-चावल का भंडारा आयोजित किया जाता है। आस-पास ही नहीं, बल्कि दूर-दराज के गांवों से भी श्रद्धालु चने की दाल का प्रसाद लेकर भंडारे में शामिल होते हैं।
भीषण गर्मी हो या बारिश की फुहारें, श्रद्धालुओं की आस्था में कोई कमी नहीं आती। बागड़ गए भगत के घर पर दिनभर भक्ति संगीत, कीर्तन और ढोल-नगाड़ों की गूंज सुनाई देती है। यात्रा पूरी कर जब भगत घर लौटते हैं तो एक विशाल भंडारे का आयोजन होता है, जिसे स्थानीय भाषा में "कनदूरी" कहा जाता है। भादव मास में के अंत तक सभी गांव में गोगा मेडी पर मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें सबसे चर्चित सहारनपुर में लगने वाला गोगा मेढ़ी का मेला होता है।
इस धार्मिक आयोजन में सभी बिरादरियों के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हुए ग्रामीण आपसी प्रेम और एकता के साथ भक्ति में लीन नजर आते हैं। गांव के बुजुर्गों का मानना है कि यात्रा के दौरान भगत को पहले आस पास के गांव में ढोल के साथ पैदल चल कर यात्रा करनी होती ।
बागड़ यात्रा न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह गांव में सामाजिक एकता, परंपराओं और आस्था की मजबूत डोर को भी दर्शाती है।
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