यह टिप्पणी एक सरकारी कर्मचारी को 'पाकिस्तानी' कहने के मामले में की गई, जिसमें कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ मामला बंद कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिसमें उसने यह स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति को 'मियां-तियां' या 'पाकिस्तानी' कहने को धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला अपराध नहीं माना जाएगा। यह निर्णय तब आया जब एक सरकारी कर्मचारी ने एक व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी जिसका आरोप था कि उसने उसे 'पाकिस्तानी' कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिसमें उसने यह स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति को 'मियां-तियां' या 'पाकिस्तानी' कहने को धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला अपराध नहीं माना जाएगा। यह निर्णय तब आया जब एक सरकारी कर्मचारी ने एक व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी जिसका आरोप था कि उसने उसे 'पाकिस्तानी' कहा।
कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हालांकि ऐसे शब्दों का उपयोग करना अनुचित हो सकता है, लेकिन इससे किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का मामला नहीं बनता है। जस्टिस ने यह भी टिप्पणी की कि भारत में असहमति और विचारों का आदान-प्रदान लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक अनिवार्य हिस्सा है, और इसे संरक्षित किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में यह भी उल्लेख किया कि न्यायालय केवल उन मामलों में हस्तक्षेप करेगा जहाँ स्पष्ट रूप से किसी की धार्मिक भावनाएं आहत हों या फिर किसी भी प्रकार का अपमान किया गया हो। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में आरोपी ने ऐसी कोई बात नहीं की है जो धार्मिक समुदाय की भावनाओं को सीधे तौर पर ठेस पहुंचाए।
इस फैसले के पीछे सुप्रीम कोर्ट का विचार यह है कि समाज में विचारों की स्वतंत्रता का होना आवश्यक है, बशर्ते वह किसी प्रकार की हिंसा या नफरत को बढ़ावा न दे। कोर्ट के इस निर्णय ने संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को भी मजबूती दी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार के निर्णय से समाज में संवेदनशील वार्तालाप को बढ़ावा मिलेगा और लोग एक-दूसरे के विचारों को स्वीकारने के लिए प्रेरित होंगे। वहीं, यह भी अपेक्षित है कि इस तरह के फैसले आगे चलकर सामाजिक न्याय एवं सहिष्णुता की दिशा में सकारात्मक प्रभाव डालेंगे।
इस निर्णय के बाद, कई अधिकार समूह और सामाजिक कार्यकर्ता इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहे हैं, जबकि कुछ लोग इस पर भी विचार कर रहे हैं कि क्या ऐसे शब्दों के उपयोग को सामाजिक मानदंडों के भीतर उचित माना जा सकता है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय समाज में असहिष्णुता और नफरत के खिलाफ एक मजबूत संदेश के रूप में कार्य करेगा।
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